शनिवार, 17 मई 2014

कला-साधना / कवि : महेंद्रभटनागर

कला-साधना  / कवि : महेंद्रभटनागर

हर हृदय में
स्नेह की दो बूँद ढल जाएँ,
कला की साधना है इसलिए!

गीत गाओ
मोम में पाषाण बदलेगा,
तप्त मरुथल में
तरल रस-ज्वार मचलेगा!

गीत गाओ
शांत झंझावात होगा,
रात का साया
सुनहरा प्रात होगा!

गीत गाओ
मृत्यु की सुनसान घाटी में
नया जीवन-विहंगम चहचहाएगा!
मूक रोदन भी चकित हो
ज्योत्स्ना-सा मुसकराएगा!

हर हृदय में
जगमगाए दीप,
महके मधु-सुरिभ चंदन
कला की अर्चना है इसलिए!

गीत गाओ
स्वर्ग से सुंदर धरा होगी,
दूर मानव से जरा होगी,
देव होगा नर,
नारी अप्सरा होगी!
गीत गाओ
त्रस्त जीवन में
सरस मधुमास जाए,

डाल पर, हर फूल पर
उल्लास छा जाए,
पुतलियों को
स्वप्न की सौगात आए!

गीत गाओ
विश्व-व्यापी तार पर झंकार कर,
प्रत्येक मानस डोल जाए
प्यार के अनमोल स्वर पर!

हर मनुज में
बोध हो सौन्दर्य का जाग्रत
कला की कामना है इसलिए!
110, बलवन्तनगर, गांधी रोड, ग्वालियर — 474 002 [म॰प्र॰]
फ़ोन : 81 097 300 48
ई- मेल : drmahendra02@gmail.com