शुक्रवार, 30 जुलाई 2010

प्रेमचंद :[महेंद्रभटनागर] .

प्रेमचंद

[महेंद्रभटनागर]
.


कथाकार !
युग के सजग, मुखरित, अमिट इतिहास,
जन-शक्ति के अविचल प्रखर विश्वास !
दृष्टा थे भविष्यत्के ;
धनी भावों-विचारों के !
अमर शिल्पी
मनुज-उर के
अकृत्रिम, सूक्ष्म-विश्लेषक !
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सितारे-तीव्र
मेघाच्छन्न जीवन के गगन के,
रूढ़ियाँ-बंधन शिथिल तुमने किये
अपनी अरुक, दृढ़ लेखनी के बल !
सभी ये थरथरायीं
काल्पनिक, प्राचीन, झूठी, जन-विरोधी
धारणाएँ, मान्यताएँ ;
धर्म-ग्रन्थों से बँधी
निर्जीव, मिथ्या, शून्य की बातें
अनोखी, खोखली
जो हो रही थीं प्रगति-बाधक !
पतित साम्राज्यवादी-शक्तियों का
नग्न-चित्रण कर
बनायी भूमिका
जनबल अथक-संघर्ष की !
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अमर साधक !
सतत चिंतित रहे तुम
स्वर्ग धरती को बनाने !
अभय सामाजिक सुधारक,
युग-पुरुष !
तुमको, तुम्हारी ज्योति को
क्या ढक सकेंगी काल-रेखाएँ ?
नहीं अब शेष साहस जो
अँधेरा सिर उठाए !
तुम प्रगति-पथ की
नयी ज्योतित दिशा का
मार्ग-दर्शन कर रहे हो !
प्राण में बल भर रहे हो !

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मंगलवार, 27 जुलाई 2010

प्रेमचंद जयंती समारोह-2010

हिंदी साहित्‍य के महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद की 130 वीं जयंती के अवसर पर जयपुर में दो दिवसीय प्रेमचंद समारोह का आयोजन किया जा रहा है। राजस्‍थान प्रगतिशील लेखक संघ और जवाहर कला केंद्र के संयुक्‍त तत्‍वावधान में होने वाले इस समारोह में शनिवार 31 जुलाई, 2010 को 'कथा दर्शन' में सायं 6.30 बजे दूरदर्शन द्वारा गुलजार के निर्देशन में प्रेमचंद की कहानियों पर बनी टेलीफिल्‍मों का प्रदर्शन होगा। रविवार 01 अगस्‍त, 2010 को 'कथा सरिता' में राजस्‍थान के दस युवा कथाकारों का दो सत्रों में कहानी पाठ होगा। सुबह 10.30 बजे प्रथम सत्र की शुरुआत वरिष्‍ठ रंगकर्मी एस.एन. पुरोहित द्वारा प्रेमचंद की कहानी 'पूस की रात' के वाचन से होगी। वरिष्‍ठ कथाकार जितेंद्र भाटिया की अध्‍यक्षता में इस सत्र में मनीषा कुलश्रेष्‍ठ, अरुण कुमार असफल, रामकुमार सिंह, राजपाल सिंह शेखावत और आदिल रजा मंसूरी का कहानी पाठ होगा। दोपहर 2.30 बजे दूसरे सत्र में वरिष्‍ठ साहित्‍यकार नंद भारद्वाज की अध्‍यक्षता में चरण सिंह पथिक, गौरव सोलंकी, दुष्‍यंत, दिनेश चारण और लक्ष्‍मी शर्मा का कहानी पाठ होगा। जयपुर की सुपरिचित संस्‍कृतिकर्मी सीमा विजय द्वारा प्रेमचंद की कहानी 'बूढ़ी काकी' के वाचन से समारोह का समापन होगा।

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

कविता : महेंद्रभटनागर

श्रमिक

[महेंद्रभटनागर]
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टिकी नहीं है

शेषनाग के फन पर धरती !

हुई नहीं है उर्वर

महाजनों के धन पर धरती !

सोना-चाँदी बरसा है

नहीं ख़ुदा की मेहरबानी से,

दुनिया को विश्वास नहीं होता है

झूठी ऊलजलूल कहानी से !
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सारी ख़ुशहाली का कारण,

दिन-दिन बढ़ती

वैभव-लाली का कारण,

केवल श्रमिकों का बल है !

जिनके हाथों में

मज़बूत हथौड़ा, हँसिया, हल है !

जिनके कंधों पर

फ़ौलाद पछाड़ें खाता है,

सूखी हड्डी से टकराकर

टुकड़े-टुकड़े हो जाता है !
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इन श्रमिकों के बल पर ही

टिकी हुई है धरती,

इन श्रमिकों के बल पर ही

दीखा करती है

सोने-चाँदी की भरती !
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इनकी ताक़त को

दुनिया का इतिहास बताता है !

इनकी हिम्मत को

दुनिया का विकसित रूप बताता है !

सचमुच, इनके क़दमों में

भारीपन खो जाता है !

सचमुच, इनके हाथों में

कूड़ा-करकट तक आकर

सोना हो जाता है।
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इसीलिए

श्रमिकों के तन की क़ीमत है !

इसीलिए

श्रमिकों के मन की क़ीमत है !
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श्रमिकों के पीछे दुनिया चलती है ;

जैसे पृथ्वी के पीछे चाँद

गगन में मँडराया करता है !

श्रमिकों से

आँसू, पीड़ा, क्रंदन, दुःख-अभावों का जीवन

घबराया करता है !

श्रमिकों से

बेचैनी औ बरबादी का अजगर

आँख बचाया करता है !
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इनके श्रम पर ही निर्मित है

संस्कृति का भव्य-भवन,

इनके श्रम पर ही आधारित है

उन्नति-पथ का प्रत्येक चरण !
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हर दैविक-भौतिक संकट में

ये बढ़ कर आगे आते हैं,

इनके आने से

त्रस्त करोड़ों के आँसू थम जाते हैं !

भावी विपदा के बादल फट जाते हैं !

पथ के अवरोधी-पत्थर हट जाते हैं !

जैसे विद्युत-गतिमय-इंजन से टकरा कर

प्रतिरोधी तीव्र हवाएँ

सिर धुन-धुन कर रह जाती हैं !

पथ कतरा कर बह जाती हैं !
.

श्रमधारा कब

अवरोधों के सम्मुख नत होती है ?

कब आगे बढ़ने का

दुर्दम साहस क्षण भर भी खोती है ?

सपनों में

कब इसका विश्वास रहा है ?

आँखों को मृग-तृष्णा पर

आकर्षित होने का

कब अभ्यास रहा है ?
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श्रमधारा

अपनी मंज़िल से परिचित है !

श्रमधारा

अपने भावी से भयभीत न चिंतित है !
.

श्रमिकों की दुनिया बहुत बड़ी !

सागर की लहरों से लेकर

अम्बर तक फैली !

इनका कोई अपना देश नहीं,

काला, गोरा, पीला भेष नहीं !

सारी दुनिया के श्रमिकों का जीवन,

सारी दुनिया के श्रमिकों की धड़कन

कोई अलग नहीं !

कर सकती भौगोलिक सीमाएँ तक

इनको विलग नहीं !