रविवार, 27 दिसंबर 2009

युवा दखल: साहित्यकार की जगह सडक नहीं होती


पूर्व घोषित कार्यक्रम के अनुसार युवा संवाद की पहल पर रविवार को शहर के तमाम जनसंगठनों ने पुराने हाईकोर्ट से शहर के हृदयस्थल महाराज बाडे पर पोस्ट आफ़िस की सीढियों के सहारे बने स्थायी मंच से आमसभा का आयोजन किया। रैली में शामिल 75 लोगों की संख्या सभा में दूनी हो गयी। लोग पूरे उत्साह से नारे लगा रहे थे-- कामगार एकता-ज़िन्दाबाद, महंगाई को दूर करो, लेखकों, ट्रेडयूनियनकर्मियों, महिलाओं और वक़ीलों की एकता-- ज़िन्दाबाद, शिक्षा, रोटी और रोज़गार-तीनों बनें मौलिक अधिकार, कैसी तरक्की कौन ख़ुशहाल- कारें सस्ती महंगी दाल!

सभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने मंहगाई को राष्ट्रीय आपदा घोषित किये जाने, शिक्षा, रोटी और रोज़गार को मौलिक अधिकार बनाये जाने तथा नयी आर्थिक नीति वापस लेने की मांग की। एटक के राजेश शर्मा, कैलाश कोटिया, युवा संवाद के अजय गुलाटी, स्त्री अधिकार संगठन कि किरण, सीटू के श्याम कुशवाह, इण्डियन लायर्स एसोशियेशन के गुरुदत्त शर्मा तथा यतींद्र पाण्डेय, ग्वालियर यूनाईटेड काउंसिल आफ़ ट्रेड यूनियन्स के एम के जायसवाल, एम पी मेडिकल रिप्रेज़ेन्टेटिव यूनियन के राजीव श्रीवास्तव, आयुष मेडिकल एसोसियेशन के डा अशोक शर्मा, डा एम पी राजपूत, जन संघर्ष मोर्चे के अभयराज सिंह भदोरिया, नगर निगम कर्मचारी यूनियन के अशोक ख़ान, प्रलेसं के भगवान सिंह निरंजन सहित तमाम वक्ताओं ने इस संयुक्त मोर्चे को वक़्त की ज़रूरत बताते हुए संघर्ष की लौं तेज़ करने का संकल्प किया। संचालन युवा कवि अशोक कुमार पाण्डेय ने किया।

लेकिन जहां एक तरफ इन तबकों ने अपनी व्यापक एकता का परिचय दिया, शहर के मूर्धन्य काग़ज़ी शेर उर्फ़ साहित्यकार इससे दूर ही रहे। एक साहब को जब हमने फोन लगाया तो उत्तर मिला-- ''अरे भाई यह हमारा काम नहीं है। साहित्यकार की जगह सडक नहीं होती।'' आप को क्या लगता है?

रविवार, 6 दिसंबर 2009

सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ साझा अभियान

धार्मिक कट्टरपंथ तथा आतंकवाद एक दूसरे के पूरक हैं। छः दिसंबर भारतीय संविधान तथा साम्प्रदायिक सद्भाव पर आधारित हमारी परम्परा के चेहरे पर बदनुमा दाग़ है। आर एस एस और उसके आनुसांगिक संगठनो ने सत्ता के लोभ में देश के भीतर जो धार्मिक उन्माद पैदा कर लोगों के बीच साम्प्रदायिक विभाजन किया वही आज आतंकवाद के मूल में है। मनमोहन सिंह कहते हैं की माओवाद देश के सम्मुख सबसे बड़ा खतरा है पर वास्तविकता यह है कि हमारे सम्मुख सबसे बड़ा खतरा धार्मिक कट्टरपंथ है। यह बातें आज युवा संवाद की पहलकदमी पर दिसंबर को आयोजित साम्प्रदायिकता और आतंकवाद विरोधी दिवस पर अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए डा मधुमास खरे ने कही।


उल्लेखनीय है कि युवा संवाद, संवाद, स्त्री अधिकार संगठन , प्रगतिशील लेखक संघ, आल इंडिया लायर्स एसोशियेशन, जनवादी लेखक संघ, बीमा कर्मचारी यूनियन, गुक्टू, इप्टा सहित शहर के तमाम जनसंगठनों ने छः दिसंबर को सांप्रदायिकता और आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप मे मनाते हुए फूलबाग स्थित गांधी प्रतिमा पर संयुक्त बैठक आयोजित की।


बैठक में इन संगठनों के प्रतिनिधियों ने भारत तथा दुनिया भर में बढते आतंकवाद पर चिंता जताते हुए कहा कि इसके मूल में आर्थिक विषमतायें ही प्रमुख हैं। अजय गुलाटी ने विषय की प्रस्तावना रखते हुए कहा कि आज अंबेडकर की पुण्यतिथि है और उन्होंने बहुत पहले धर्म के अमानवीय स्वरूप को स्पष्ट करते हुए कहा था कि अगर कभी हिन्दु राष्ट्र बना तो वह दलितों और महिलाओं के लिये विनाशकारी होगा। अशोक पाण्डेय ने कहा कि इस धार्मिक राजनीति के केन्द्र में न मनुष्य है न इश्वर बस सत्ता है। आज़ादी के पहले मुस्लिम लीग और आर एस एस दोनों अंग्रेज़ों की सहयोगी थीं और बाद में देशभक्त हो गयीं। डा प्रवीण नीखरा ने शिक्षा व्यवस्था में आमूल परिवर्तन पर ज़ोर दिया तो ज्योति कुमारी तथा किरन ने धर्म के महिला विरोधी स्वरूप पर ध्यान खींचते हुए कहा कि हर दंगा स्त्री के शरीर पर हमले से शुरु होता है।


डा पारितोष मालवीय, अशोक चौहान, जितेंद्र बिसारिया, पवन करण, राजवीर राठौर, ज़हीर कुरेशी, फ़िरोज़ ख़ान सहित अनेक लोगों ने बहस में हिस्सेदारी की। अंत में पास एक साझा प्रस्ताव में साम्प्रदायिकता विरोधी ताक़तों को मज़बूत करने तथा शीघ्र मंहगाई पर जनजागरण के लिये एक अभियान चलाने पर सहमति बनी।